Thursday, March 19, 2009
सस बहू से देष की लाडलियों तक
टीवी के डेली सोप से जिनका पाला पड़ा है वही जानता है हक इन दिनों सास बहू का मुद्दा ठंडा पड़ा है और देष की लाडलियों का मुद्दा गरमाया है। एकता कपूर के ‘‘के‘‘ का जादू खत्म हो गया है। नए चैनल कलर ने अपने प्रोग्राम के कंटेंट के ज़रिए सिर्फ एक ही साल के अंदर टीआरपी के सभी रिकार्ड तोड़ दिए हैं। बालिका वधू से उसकी यह यात्रा षूरु हुई थी। ऐसा नहीं है कि नारी उत्थान के लिए पहले कोई कार्यक्रम ना बनाया गया हो लेकिन महिला पुरुष के लिंग अनुपात का निरंतर कम होते जाना चिंता का बड़ा विषय बन गया है। इस ओर यह कदम सराहनीय है। समाज की जड़ता को दिखाने से षुरु हुआ यह सिलसिला अब लगता है थमेगा नहीं बलिका वधू, उतरन, ना आना इस देस लाडो के बाद सबका चहेता बना कलर चैनल अब एक और नया सीरियल षुरु करने वाला है भाग्यविधाता। जिसमें लड़कियों के लिए वर अपहरण कर के लाए जाते हैं। हालांकि इस तरह के सीरियल पेष करना कलर का कोपीराइट था लेकिन अब स्टार और ज़ी ने भी इसकी षुरुआत कर दी है। ‘मेरे घर आई एक नन्ही परी‘ और अगले जनम मोहे बिटिया ही किजो इसी श्रृख्ंाला को आगे बढ़ाते हैं। इस संदर्भ में यह कहना गलत ना होगा कि देर से ही सही टीवी ने ज़मीनी हक़ीकत को पहचानना तो षुरु किया। देष का एक बड़ा तबका जो अभी भी बेटियों को बोझ और तिरस्कार की दृष्टि से देखता है आषा है कि इससे कोई सीख लेगा। यह रुढ़िवादी सिर्फ गा्रमीण परिवेष में है ऐसा नहीं है यह सोच पढ़े लिखे लोगों में भी है। जहां भी लड़कियों को अधिक प्राथमिकता मिलती है वहां इस पुरुष प्रधान समाज में उन लोगों को यह कहने का मौका मिल जाता है कि ‘‘ लड़की है इसलिए‘‘ वह यह मानने को तैयार ही नहीं होते की महिलाएं भी उतनी क्षमता रखती है औश्र अपने बलबूते सब कुछ कर सकती है। औरत ही औरत की दुष्मन होती है यह पुरुषवादी सोच और षड्यंत्र ही है। बराबरी का हक़ पाने के लिए महिलाओं को ना जाने कितना वक्त और लगेगा।
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15 comments:
उचित कहा ......सार्थक लेख
सास बहु के झमेलों से पीछा कलर्स वालों ने ही छुडाया है..तभी तो स्टार टी वी के सभी सिरिअल... बदल गए है...
बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
बराबरी का हक़ पाने के लिए महिलाओं को ना जाने कितना वक्त और लगेगा। appne such kaha
bilkul thik kaha aapne...
ek gajal send karta hu..रोए है बहुत तब जा के करार मिला है
इस जहाँ में किसे भला सच्चा प्यार मिला है
गुज़र रहीं है जिन्दगी इम्तिहान के दौर से
एक खत्म हुआ तो दूसरा तैयार मिला है
मेरे दामन को खुशियों का नहीं मलाल
गम का खज़ाना जो इसको बेशुमार मिला है
वो कमनसीब है जिन्हे महबूब मिल गया
मैं खुशनसीब हू¡ मुझे इंतज़ार मिला है
गम नहीं मुझे दुश्मन हुआ ये ज़माना
जब दोस्त हाथों में लिये तलवार मिला है
सब कुछ खुदा ने तुम को भला कैसे दे दिया
मुझे तो उसके दर से सिर्फ इन्कार मिला है
narayan narayan
बिलकुल सही कहा आपने ...इन सास बहू सीरीयलस पर मै अपने विचार कहूं तो ये सिर्फ समाज के उस आईने को उभार रहे है,,,,जिन्हें अपने शब्दों में भी न लाकर उन्हें ख़त्म कर देना चाहिए...
चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है .नियमित लिखते रहें इससे संवाद-संपर्क बना रहता है , ढेर सारी शुभकामनाएं !
स्वागत है जी आपका ब्लॉग जगत में.
बस ऐसे ही लिखते रहो.
और हाँ, ये वर्ड वेरिफिकेशन हटा दो. टिप्पणी पोस्ट करने में दिक्कत होती है.
jyoti jee,
bahut sahee jaa rahee hain aap isee tarah likhtee rahein.
100
औरत के बहुआयामी जीवन एवम् व्यक्तित्व पर केन्द्रित एक गज़ल-
मेरा मानना है के स्त्री पृकृति की सबसे पूर्ण कृति है,पुरुष उसके सामने स्वय़ं को बौना पाता है,अधूरा महसूस करता है,
इसीलिये वह कभी एट्म बम,कभी चंद्र्यान ,कभी किले,महल तो कभी नये-नये धर्म ईजाद करता दिखता है,
जबकि स्त्री शिशु को जन्म देकर, उसका पालन-पोषण कर जीवन की पूर्णता, पाकर संतुष्ट् हो जाती है इसीलिए उसे कभी कोई धर्म ईजाद करने की
जरूरत महसूस नहीं हुई।
श्याम सखा ‘श्याम’
1
काँच का बस एक घर है लड़कियों की जिन्दगी
और काँटों की डगर है लड़कियों की जिन्दगी
2
मायके से जब चले है सजके ये दुल्हिन बनी
दोस्त अनजाना सफर है लड़कियों की जिन्दगी
3
एक घर ससुराल है तो दूसरा है मायका
फिर भी रहती दर-ब-दर है लड़कियों की जिन्दगी
4
खूब देखा, खूब परखा, सास को आती न आँच,
स्टोव का फटना मगर है लड़कियों की जिन्दगी
5
पढलें लिखलें और करलें नौकरी भी ये भले
सेज पर सजना मगर है लड़कियों की जिन्दगी
6
इस नई तकनीक ने तो है बना दी कोख भी
आह कब्रिस्तान भर है लड़कियों की जिन्दगी
7
कारखानों अस्पतालों या घरों में भी तो यह
रोज लड़ती इक समर है लड़कियों की जिन्दगी
घर भी तो इनके बिना बनता नहीं घर दोस्तो
क्यों भला फ़िर घाट पर है लड़कियों की जिन्दगी
22
आह धन की लालसा का आज ये अंजाम है
इश्तिहारों पर मुखर है लड़कियों की जिन्दगी
23
कर नुमाइश जिस्म की क्या खुद नहीं अब आ खड़ी
नग्नता के द्वार पर है लड़कियों की जिन्दगी
24
प्यार करने की खता जो कहीं करलें ये कभी
तब लटकती डाल पर है लड़कियों की जिन्दगी
25
जानती सब, बूझती सब, फिर भला क्यों बन रही
हुस्न की किरदार भर है लड़कियों की जिन्दगी
2
32
ठान लें जो कर गुजरने की कहीं ये आज भी
पिफर तो मेधा पाटकर है लड़कियों की जिन्दगी
33
क्यों नहीं तैतीसवां हिस्सा भी इसको दे रहे,
आधे की हकदार गर है लड़कियों की जिन्दगी
34
देवता बसते वहाँ है पूजते नारी जहाँ
क्यों धरा पर भार भर है लड़कियों की जिन्दगी
मैंने तुमने और सबने कह दिया सुन भी लिया
क्यों न फिर जाती सुधर है लड़कियों की जिन्दगी
37
माफ मुझको अब तू कर दें ऐ खुदा मालिक मेरे
हाँ यही किस्मत अगर है लड़कियों की जिनदगी
अभिनव प्रथम कदम पर बधाई
अगर कविता या गज़ल में रुचि हो तो मेरे ब्लॉग पर आएं
http://gazalkbahane.blogspot.com/ कम से कम दो गज़ल [वज्न सहित] हर सप्ताह
http:/katha-kavita.blogspot.com दो छंद मुक्त कविता हर सप्ताह कभी-कभी लघु-कथा या कथा का छौंक भी मिलेगा
सस्नेह
श्यामसखा‘श्याम’
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सृजन कर्ता निराश है शुभ नही ये आस है
Bahut achchha,
Kabhi yahan bhi aayen
http://jabhi.blogspot.com
आपके ब्लॉग पर आकर सचमुच बहुत अच्छा लगा. आपकी बात से पूर्णतः सहमत हूँ.
aapke nature or vicharon main antar lagta hai.....becoz nature is friendly but post main bhadas..... achhi post mere chitthe par bhi swagat hai...
Jai Ho Mangalmay Ho
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